Wednesday, November 2, 2022

जरूर पढ़ें क्योंकि यह सत्य आपको भी अवश्य ही नहीं मालूम

बात उन दिनों की है जब हम कॉलेज में प्रथम वर्ष के छात्र थे. उस वक्त युवाओं में धर्म के प्रति इतना जोर नही था ना ही कोई ज्ञान. दशहरा बीत चुका था दीपावली समीप थी तभी एक दिन कुछ युवक युवतियों की टाइप टोली हमारे कॉलेज में आई.


उन्होंने स्टूडेंट्स से कुछ प्रश्न पूछे किन्तु एक प्रश्न पर कॉलेज में सन्नाटा छा गया.


उन्होंने पूछा जब दीपावली भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से अयोध्या लौटने की खुशी में मनाई जाती है तो दीपावली पर लक्ष्मी पूजन क्यों होता है ? राम की पूजा क्यों नहीं ?


प्रश्न पर सन्नाटा छा गया क्योंकि उस वक्त कोई सोशलमीडिया तो था नही, स्मार्टफोन भी नही थे किसी को कुछ नही पता. तब सन्नाटा चीरते हुए एक हाथ प्रश्न का उत्तर देने हेतु ऊपर उठा.


उसने बताया क्योंकि दीपावली उत्सव दो युग सतयुग और त्रेता युग से जुड़ा हुआ है. सतयुग में समुद्र मंथन से माता लक्ष्मी उस दिन प्रगट हुई थी इसलिए लक्ष्मी पूजन होता है. भगवान राम भी त्रेता युग मे इसी दिन अयोध्या लौटे थे तो अयोध्या वासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया था इसलिए इसका नाम दीपावली है. इसलिए इस पर्व के दो नाम है लक्ष्मी पूजन जो सतयुग से जुड़ा है दूजा दीपावली जो त्रेता युग प्रभु राम और दीपों से जुड़ा है.


उसके उत्तर के बाद थोड़ी देर तक सन्नाटा छाया रहा क्योंकि किसी को भी उत्तर नही पता था यहां तक कि प्रश्न पूछ रही टोली को भी नही. खैर सबने खूब तालियां बजाई. उसके बाद एक अखबार ने उनका इंटरव्यू भी लिया. उस समय अखबार का इंटरव्यू लेना बहुत बड़ी बात हुआ करती थी.


बाद में पता चला कि वो टोली आज की शब्दावली अनुसार लेफ़्ट लिबर्ल्स की थी जो हर कॉलेज में जाकर युवाओं के मन मस्तिष्क में हमारी संस्कृति के प्रति भ्रम पैदा करके हमारे छात्रों का ब्रेनवॉश कर रही थी. लेकिन हमारे उत्तर के बाद वह टोली गायब हो गई.

प्रश्न है

लक्ष्मी गणेश का आपस में क्या रिश्ता है ?

और दीवाली पर इन दोनों की पूजा क्यों होती है ?? 


सही उत्तर है


लक्ष्मी जी जब सागरमन्थन में मिलीं और भगवान विष्णु से विवाह किया तो उन्हें सृष्टि की धन और ऐश्वर्य की देवी बनाया गया तो उन्होंने धन को बाँटने के लिए मैनेजर कुबेर को बनाया। कुबेर बड़े ही कंजूस थे, वे धन बाँटते नहीं थे, खुद धन के भंडारी बन कर बैठ गए। 


माता लक्ष्मी परेशान हो गईं, उनकी सन्तान को कृपा नहीं मिल रही थी। उन्होंने अपनी व्यथा भगवान विष्णु को बताई। भगवान विष्णु ने उन्हें कहा कि तुम मैनेजर बदल लो, माँ लक्ष्मी बोली, यक्षों के राजा कुबेर मेरे परम भक्त हैं उन्हें बुरा लगेगा।

तब भगवान विष्णु ने उन्हें गणेश जी की विशाल बुद्धि को प्रयोग करने की सलाह दी। 

माँ लक्ष्मी ने गणेश जी को धन का डिस्ट्रीब्यूटर बनने को कहा, गणेश जी ठहरे महाबुद्धिमान। वे बोले:- माँ, मैं जिसका भी नाम बताऊंगा, उस पर आप कृपा कर देना, कोई किंतु परन्तु नहीं। माँ लक्ष्मी ने हाँ कर दी !

अब गणेश जी लोगों के सौभाग्य के विघ्न/ रुकावट को दूर कर उनके लिए धनागमन के द्वार खोलने लगे।

कुबेर भंडारी रह गए, गणेश पैसा सैंक्शन (स्वीकृत) करवाने वाले बन गए।

 

गणेश जी की दरियादिली देख माँ लक्ष्मी ने अपने भतीजे/ भांजे /मानस पुत्र श्रीगणेश को आशीर्वाद दिया कि जहाँ वे अपने पति नारायण के सँग ना हों, वहाँ उनका पुत्रवत गणेश उनके साथ रहें।


दीवाली आती है कार्तिक अमावस्या को, भगवान विष्णु उस समय योगनिद्रा में होते हैं, वे जागते हैं ग्यारह दिन बाद देवउठनी एकादशी को। माँ लक्ष्मी को पृथ्वी भ्रमण करने आना होता है शरद पूर्णिमा से दीवाली के बीच के पन्द्रह दिन, तो वे सँग ले आती हैं गणेश जी को, इसलिए दीवाली को लक्ष्मी गणेश की पूजा होती है।

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(यह कैसी विडंबना है कि देश और हिंदुओ के सबसे बड़े त्यौहार का पाठ्यक्रम में कोई विस्तृत वर्णन नही है और जो वर्णन है वह अधूरा है)

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